Durga Chalisa in Hindi & Hinglish | Complete Durga Chalisa Lyrics with Meaning

Durga Chalisa in Hindi & Hinglish | Complete Durga Chalisa Lyrics with Meaning

Durga Chalisa is a powerful devotional hymn dedicated to Goddess Durga. Recite the Durga Chalisa in Hindi & Hinglish to invoke Maa Durga’s blessings for protection, strength, and success. Read the complete lyrics with proper pronunciation and devotion.

॥ दुर्गा चालीसा ॥

(संस्कृत / हिंदी में)

॥ दोहा ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥१॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥२॥

अर्थात:- हे माँ दुर्गा! आप सुखों की दात्री हैं, आपको सादर प्रणाम। हे माँ अम्बे! आप संसार के समस्त प्राणियों के दुःखों का नाश कर उन्हें शांति प्रदान करती हैं, आपके पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन है। आपकी ज्योति निराकार और असीम है, जिसकी दिव्यता तीनों लोकों में व्याप्त है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥३॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥४॥

अर्थात:- हे माँ! आपका मुख मंडल चंद्रमा की भाँति ज्योतिर्मय और तेजस्वी है, जो अत्यंत विशाल प्रतीत होता है। आपके नेत्र रक्तवर्ण हैं और भौंहें अद्भुत शक्ति से युक्त हैं। आपका यह रौद्र रूप भी अत्यंत सुंदर और सुहावना है, जिसके दर्शन मात्र से जीवन में सुख और आनंद की प्राप्ति होती है।

तुम संसार शक्ति लै कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥५॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥६॥

अर्थात:- हे माँ! आप प्रलयकाल में प्रलयकारी शक्तियों का संहार कर सृष्टि की रक्षा करती हैं। आप माँ गौरी के रूप में विराजमान हैं, जो भगवान शिव को परम प्रिय हैं। शिवजी ही नहीं, समस्त योगीजन आपके गुणों का गान करते हैं, और ब्रह्मा तथा विष्णु जैसे देवाधिदेव भी प्रतिदिन आपके दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥७॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥८॥

अर्थात:- हे माँ! आप प्रलयकाल में प्रकट होकर प्रलयंकारी शक्तियों का संहार करती हैं।
आप माँ गौरी के रूप में भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। केवल शिव ही नहीं, सभी तपस्वी
योगीजन आपके गुणों का स्तवन करते हैं, और देवाधिदेव ब्रह्मा तथा विष्णु भी प्रतिदिन आपके
दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हैं।
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥९॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥१०॥

अर्थात: हे माँ! आप ही माँ सरस्वती का रूप धारण कर ऋषियों और मुनियों को सद्बुद्धि
प्रदान करती हैं, और उन्हें ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर उनका उद्धार करती हैं। हे माँ!
जब हिरण्यकश्यप नामक राक्षस का अत्याचार असहनीय हो गया, तब आपने खंभे से प्रकट
होकर नरसिंह रूप में अवतार लिया और अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना की।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥११॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥१२॥

अर्थात: हे माँ! आपने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का संहार किया और
अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। आप ही माँ लक्ष्मी का रूप धारण करती हैं और श्री नारायण
के अंग में समाहित होकर उनकी शक्ति और संपत्ति का विस्तार करती हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥१३॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥१४॥

अर्थात: हे माँ! आप ही क्षीर सागर में निवास करती हैं, आप दया और कृपा की सागर हैं, कृपया मेरे मन की आशाओं को पूर्ण करें। हे माँ! आप ही हिंगलाज की माँ भवानी हैं, आपकी महिमा अनंत और अपरमित है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥१५॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥१६॥

अर्थात: हे माँ! आप ही मातंगी, धुमावती, भुवनेश्वरी और माँ बगला हैं, जो सबको सुख प्रदान करती हैं। हे माँ! आप ही श्री भैरवी हैं और समस्त जगत की तारनहार माँ तारा भी आप ही हैं। आप ही वह माँ हैं, जो दुःखों का निवारण करने वाली और संकटों से मुक्ति दिलाने वाली छिन्नमस्ता के रूप में प्रकट होती हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥१७॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥१८॥

अर्थात: हे माँ! आप शेर की सवारी करती हैं, और आपकी अद्भुत शक्ति का परिचय महावीर बजरंगबली हनुमान जी देते हैं, जो आपकी अगुवाई करते हैं। हे माँ! आपके हाथों में खप्पड़ और तलवार होती है, जिसे देखकर काल (मृत्यु) भी भयभीत होकर भाग जाता है।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥१९॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥२०॥

अर्थात: हे माँ भवानी! आप अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल धारण करती हैं, जिनका दर्शन मात्र शत्रु को भय से काँपने पर विवश कर देता है। हे माँ! आप ही नगरकोट में विराजमान हैं और तीनों लोकों में आपका ही गुणगान होता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥२१॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥२२॥

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥२३॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥२४॥

अर्थात: हे माँ भवानी! आपने ही शुम्भ और निशुम्भ दानवों का संहार किया था और असंख्य रक्तबीजों का नाश किया। हे माँ! महिषासुर नामक राक्षस अत्यंत अभिमानी था, जिसके पापों के कारण धरती पर अत्याचार का बोझ बढ़ गया था। तब आपने माँ काली का विकराल रूप धारण किया और महिषासुर तथा उसकी विशाल सेना का संहार कर समस्त जीवों की रक्षा की। हे माँ! जब-जब संतों और सज्जनों पर संकट आया, तब-तब आप ही उनकी सहायक बनीं और धर्म की रक्षा की।

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥२५॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥२६॥

अर्थात: हे माँ! आपकी कृपा से अपरपुरी और समस्त लोक शोक से दूर रहते हैं। हे माँ! आपकी दिव्य दृष्टि हमेशा सभी पर बनी रहती है और सभी नर-नारी आपके चरणों में श्रद्धा पूर्वक पूजन करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥२७॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥२८॥

अर्थात: हे माँ! जो भी प्रेम और भक्ति से आपके यश का गुणगान करते हैं, उनके जीवन से दुःख और दरिद्रता दूर रहती है। जो सच्चे मन से आपका ध्यान करते हैं, वे जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं, अर्थात वे मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥२९॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥३०॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥३१॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥३२॥

अर्थात: योगी, देवता और ऋषि-मुनि सभी अपनी साधना की सिद्धि के लिए आपकी ही आराधना करते हैं, क्योंकि आपकी शक्ति के बिना योग (आत्मा और परमात्मा का मिलन) संभव नहीं है। हे माँ! आदिगुरु शंकराचार्य ने कठिन तपस्या करके अपने काम, क्रोध, लोभ और मोह पर विजय प्राप्त की, लेकिन वह दिन-रात केवल भगवान शंकर के यश का गुणगान करते थे। हे माँ जगदम्बा भवानी! उन्होंने एक क्षण भी आपका स्मरण नहीं किया और आपके शक्ति रूप को महत्व नहीं दिया। नतीजन, जो भी शक्ति उनके पास थी, वह सब चली गई और तब उन्हें इस पर पछतावा हुआ।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥३३॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥३४॥

अर्थात: हे माँ! जब आदिगुरु की शक्ति नष्ट हो गई, तब उन्होंने पछताकर आपकी शरण ली और आपके यश का गुणगान किया। उन्होंने आपकी जय-जयकार की, और तब आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ, आपने बिना विलंब किए उन्हें पुनः शक्तियां प्रदान की और आशीर्वाद दिया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥३५॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥३६॥

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥३७॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।३८॥

अर्थात: हे माँ! मुझे भी अनेकों कष्टों ने घेर रखा है, और आपके बिना हमारे इन कष्टों का नाश करने वाला कोई नहीं है। हे माँ! आशा और तृष्णा मुझे हर पल सताती हैं और हमेशा मुझे भ्रमित करती हैं। हे माँ भवानी! आप मेरे काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार रूपी इन शत्रुओं का नाश कीजिए, ताकि मैं एकाग्र मन से आपका सुमिरन और ध्यान कर सकूं। हे माँ! आप मुझपर दया करें और मुझे ऋद्धि-सिद्धि का वरदान देकर मेरा कल्याण करें।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥३९॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥४०॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

अर्थात: हे माँ जगदम्बा! मुझे ऐसा वरदान दें कि जब तक मैं जीवित रहूँ, तब तक आपकी कृपा का पात्र बनूं और आपके यश का गुणगान करता रहूँ। हे माँ! जो कोई भी इस दुर्गा चालीसा का पाठ प्रतिदिन करता है, वह सभी सुखों को प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करता है। हे माँ जगदम्बा भवानी! इस देवीदास को अपनी शरण में लेकर कृपया अपनी कृपा बरसाएं, माँ! कृपा करें, माँ!


श्री दुर्गामाता की जय ॥


Durga Chalisa (Hinglish)

Namo Namo Durge Sukh Karni,
Namo Namo Durge Dukh Harni.
Nirankar Hai Jyoti Tumhari,
Tihun Lok Phaili Ujiyari.


Shashi Lalat Mukh Mahavishala,
Netra Laal Bhrikuti Vikaraala.

Roop Maatu Ko Adhik Suhave,
Darsh Karat Jan Ati Sukh Paave.

Tum Sansar Shakti Lai Keena,
Paalan Hetu Ann Dhan Deena.

Annapurna Hui Jag Paala,
Tum Hi Aadi Sundari Baala.

Pralay Kaal Sab Naashan Haari,
Tum Gauri Shivshankar Pyaari.

Shiv Yogi Tumhare Gun Gaave,
Brahma Vishnu Tumhe Nit Dhyaave.

Roop Saraswati Ko Tum Dhaara,
De Subuddhi Rishi Munin Ubaara.

Dharyo Roop Narsingh Ko Amba,
Paragat Bhayi Phadkar Khamba.

Raksha Kari Prahlad Bachaayo,
Hiranyaksh Ko Swarg Pathaayo.

Lakshmi Roop Dharo Jag Mahi,
Shri Narayan Ang Samahi.

Ksheer Sindhu Mein Karat Vilaasa,
Dayasindhu Deejai Man Aasa.

Hinglaj Mein Tumhi Bhavani,
Mahima Amit Na Jaat Bakhani.

Matangi Aru Dhoomavati Maata,
Bhuvaneshwari Bagla Sukh Daata.

Shri Bhairav Tara Jag Tarini,
Chhinna Bhala Bhav Dukh Nivarini.

Keheri Vaahan Soh Bhavani,
Langoor Veer Chalat Agvani.

Kar Mein Khappar Khadg Viraje,
Jako Dekh Kaal Dar Bhaaje.

Sohai Astra Aur Trishoola,
Jaate Uthat Shatru Hiy Shoola.

Nagarkot Mein Tumhi Virajat,
Tihun Lok Mein Danka Baajat.

Shumbh Nishumbh Daanav Tum Maare,
Raktbeej Shankhan Sanhaare.

Mahishasur Nrip Ati Abhimani,
Jahi Agh Bhar Mahi Akulani.

Roop Karaal Kaalika Dhaara,
Sena Sahit Tum Tihi Sanhaara.

Pari Gaadh Santan Par Jab Jab,
Bhayi Sahay Maatu Tum Tab Tab.

Amarpuri Aru Basav Loka,
Tab Mahima Sab Rahein Ashoka.

Jwala Mein Hai Jyoti Tumhari,
Tumhein Sada Poojen Nar-Nari.

Prem Bhakti Se Jo Yash Gaave,
Dukh Daridra Nikat Nahin Aave.

Dhyaave Tumhein Jo Nar Man Laayi,
Janm-Maran Taako Chhuti Jaayi.

Jogi Sur Muni Kahat Pukaari,
Yog Na Ho Bin Shakti Tumhari.

Shankar Aachraj Tap Keeno,
Kaam Aru Krodh Jeet Sab Leeno.

Nishidin Dhyan Dharo Shankar Ko,
Kaahu Kaal Nahin Sumiro Tumko.

Shakti Roop Ka Maram Na Paayo,
Shakti Gayi Tab Man Pachhitayo.

Sharanagat Hui Kirti Bakhani,
Jai Jai Jai Jagdamba Bhavani.

Bhayi Prasann Aadi Jagdamba,
Dai Shakti Nahin Keen Vilamba.

Moko Maatu Kasht Ati Ghero,
Tum Bin Kaun Hare Dukh Mero.

Asha Trishna Nipat Sataave,
Moh Madaadik Sab Vinashaave.

Shatru Naash Keejai Maharani,
Sumiro Ekchit Tumhein Bhavani.

Karo Kripa Hey Maatu Dayala,
Riddhi-Siddhi Dai Karahu Nihala.

Jab Lagi Jiyun Daya Phal Paaun,
Tumharo Yash Main Sada Sunaaun.

Shri Durga Chalisa Jo Koi Gaave,
Sab Sukh Bhog Paramapad Paave.

Devidas Sharan Nij Jaani,
Karahun Kripa Jagdamb Bhavani.

॥ Shri Durga Mata Ki Jai ॥ 🚩

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